भारत की श्रेष्ठ संत परम्परा मलिका के शिरोमणि  संत रविदास जी – जयंती (माघ पूर्णिमा, 1433 विक्रम संवत) विशेष

शिमला सोलन ब्यूरो सुभाष शर्मा 24/02/2024

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भक्त रैदास कहते हैं कि सभी का प्रभु एक है तो यह जातिभेद जन्म से क्यों आ गया? यह मिथ्या है :

जांति एक जामें एकहि चिन्हा, देह अवयव कोई नहीं भिन्ना। 
कर्म प्रधान ऋषि-मुनि गावें, यथा कर्म फल तैसहि पावें। 
जीव कै जाति बरन कुल नाहीं, जाति भेद है जग मूरखाईं। 
नीति-स्मृति-शास्त्र सब गावें, जाति भेद शठ मूढ़ बतावें।

(हमारे साधु संत, भाग-1, पृ. 17)   

अर्थात् ‘जीव की कोई जाति नहीं होती, न वर्ण, न कुल । ऋषि-मुनियों ने वर्ण को कर्म प्रधान बताया है, हमारे शास्त्र भी यही कहते हैं। जाति भेद की बात, मूढ़ और शठ करते हैं। वास्तव में सबकी जाति एक ही है।’ संत रविदास कहते हैं कि संतों के मन में तो सभी के हित की बात ही रहती है। 

वे सभी के अन्दर एक ही ईश्वर के दर्शन करते हैं तथा जाति-पाँति का विचार नहीं करते: 

संतन के मन होत है, सब के हित की बात। 
घट-घट देखें अलख को, पूछे जात न पात ।। 

(संत रविदास, पृ. 119)

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