हिमाचल निर्माता डॉ. यशवंत सिंह परमार जी को शत्-शत् नमन — डॉ. राजीव बिंदल, प्रदेश अध्यक्ष, भारतीय जनता पार्टी, हिमाचल प्रदेश

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आज का दिन उन व्यक्तित्व को नमन करने का है, जिनके बिना हिमाचल की कल्पना अधूरी है — डॉ. यशवंत सिंह परमार, जिनका संकल्प, समर्पण और नेतृत्व इस देवभूमि को पर्वतीय प्रदेश से प्रगतिशील राज्य बनाने की दिशा में निर्णायक सिद्ध हुआ।

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हिमाचल प्रदेश आज पहाड़ी राज्यों की अग्रिम पंक्ति में खड़ा है — चाहे बात प्रति व्यक्ति आय की हो, बागवानी व कृषि उत्पादन की हो, शिक्षा की हो अथवा सांस्कृतिक चेतना की। यदि इस विकास की आधारशिला को टटोला जाए, तो उसके मूल में डॉ. परमार जी की दूरदर्शिता और कर्मनिष्ठा स्पष्ट दिखाई देती है।

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स्वतंत्रता के पश्चात जब देश का नव निर्माण आरंभ हुआ, तब परमार साहब ने हिमाचल के स्वरूप, इसकी भौगोलिक विषमताओं और सामाजिक संरचना को ध्यान में रखते हुए एक ऐसा विकास मॉडल प्रस्तुत किया जो आज भी अनुकरणीय है। उन्होंने कृषि और बागवानी को आर्थिक प्रगति का मूलमंत्र माना। सेब उत्पादन और ऑफ-सीजन सब्जियों की खेती में जो क्रांति आई, उसने हिमाचल को एक नए युग में प्रवेश दिलाया।

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डॉ. परमार का एक और ऐतिहासिक कदम था — भूमि सुधार। उन्होंने छोटे किसानों की जमीन की सुरक्षा हेतु प्रभावी कानून बनाए, और ‘धारा 118’ जैसे प्रावधानों के माध्यम से हिमाचल की अस्मिता को सुदृढ़ किया।

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डॉ. परमार की सोच थी कि अगर राज्य को आगे बढ़ाना है तो हर गांव तक पक्की सड़क पहुंचनी चाहिए। इसी सोच की परिणति थी कि हिमाचल में सड़कों का जाल बिछा और यह आज भी विकास की रीढ़ बना हुआ है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना और फोरलेन परियोजनाओं ने इस दिशा में नए आयाम स्थापित किए हैं।

शिक्षा को उन्होंने जीवन का प्रकाश कहा। स्वयं उच्च शिक्षित होकर, उन्होंने हिमाचल के दूरस्थ गांवों तक स्कूल खोलने की नीति अपनाई। यही कारण है कि आज हिमाचल देश के सर्वाधिक साक्षर राज्यों में गिना जाता है।

परमार जी केवल राजनेता नहीं, संस्कृति प्रेमी भी थे। वह हिमाचल की लोक कला, वेशभूषा, भोजन और भाषाओं को प्रोत्साहित करने में सदैव अग्रणी रहे। उन्हीं के प्रयासों का प्रतिफल है कि आज भी लवी मेला, कुल्लू दशहरा, रेणुका जी का मेला, मिंजर, शिवरात्रि, शूलिनी उत्सव जैसी परंपराएं जीवित हैं और हमारी सांस्कृतिक आत्मा को पुष्ट कर रही हैं।

डॉ. परमार के नेतृत्व ने हिमाचल को एक पहचान दी — विकासशील से विकसित राज्य की ओर। आज हम जब उनकी पुण्य स्मृति में उन्हें नमन करते हैं, तो यह अवसर है उनके सिद्धांतों को पुनः स्मरण करने का, उन्हें अपनाने का और उनके अधूरे सपनों को पूर्ण करने का।

श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ उस युगद्रष्टा को,
जिन्होंने हिमालय की गोद में विकास का दीप जलाया।

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