12 साल बाद थाने के ट्रंक से मिली गुमशुदा केस फाइल, शिमला पुलिस ने कोर्ट से मांगी माफी

हिमाचल प्रदेश आबकारी अधिनियम की धारा 39(1)(ए) के तहत दर्ज एक मामले की फाइल, जो 12 साल पहले गुम हो गई थी, हाल ही में बालूगंज थाने के एक ट्रंक में बरामद हुई। इस दौरान शिमला पुलिस मामले की विभागीय जांच में जुटी रही और जांच अधिकारी पर फाइल गुम करने का संदेह बना रहा। अब, जब फाइल बरामद हो गई है, सत्र न्यायालय ने एक्साइज एक्ट के इस मामले में आरोप पत्र दाखिल करने में हुई देरी के लिए शिमला पुलिस द्वारा मांगी गई माफी को स्वीकार कर लिया है।

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क्या है पूरा मामला?

यह घटना 31 मार्च 2010 की है, जब बालूगंज थाना क्षेत्र में पुलिस ने आबकारी अधिनियम के तहत जानकी राम के खिलाफ मामला दर्ज किया था। उस समय, पुलिस चौकी धामी के तत्कालीन प्रभारी एएसआई को मामले की जांच सौंपी गई थी। जांच पूरी होने के बाद फाइल गुम हो गई, जिसके कारण आरोप पत्र अदालत में पेश नहीं किया जा सका।

इस मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन पुलिस अधीक्षक के निर्देश पर एक समिति बनाई गई और संबंधित जांच अधिकारी के खिलाफ विभागीय जांच शुरू की गई। 15 जून 2023 को, जब बालूगंज थाने के प्रथम तल पर रखे दो ट्रंकों की जांच की गई, तो उसमें कई पुरानी फाइलें और दस्तावेज मिले, जिनमें यह गुमशुदा फाइल भी शामिल थी। इसके बाद, अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया गया।

अदालत की प्रतिक्रिया

अदालत में अभियोजन पक्ष ने दलील दी कि फाइल अनजाने में थाने के एक ट्रंक में रखी गई थी, जिससे यह 12 साल तक गायब रही। इसके बाद, तत्कालीन पुलिस अधीक्षक के निर्देशानुसार, संबंधित आबकारी मामले में आरोप पत्र दाखिल किया गया।

हालांकि, अदालत ने यह स्पष्ट किया कि किसी भी राज्य या वैधानिक प्राधिकारी को स्वचालित रूप से देरी माफ करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता। न्यायालय ने अभियोजन पक्ष को यह कहते हुए फटकार लगाई कि वे आरोप पत्र दाखिल करने में हुई अत्यधिक देरी का संतोषजनक स्पष्टीकरण देने में विफल रहे हैं।

अपराध के संज्ञान पर अदालत का मत

न्यायालय ने कहा कि किसी भी अपराध का संज्ञान लेने के लिए मजिस्ट्रेट के पास अधिकार है, लेकिन यह तभी संभव है जब देरी का उचित कारण साबित किया जाए। यदि सीमा अवधि समाप्त हो जाती है, तो यह अभियुक्त के पक्ष में एक महत्वपूर्ण अधिकार उत्पन्न करता है, जिसे केवल अत्यधिक मजबूर करने वाली परिस्थितियों में ही बाधित किया जा सकता है।

अदालत ने कहा कि न्याय के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए, यह आवश्यक है कि देरी के पीछे कोई ठोस कारण प्रस्तुत किया जाए। बिना संतोषजनक स्पष्टीकरण के, इस तरह की लंबी देरी को स्वीकार नहीं किया जा सकता।

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