हिमाचल हाईकोर्ट ने सरकारी जमीन पर कब्जों को नियमित करने वाले कानून को 23 साल बाद किया रद्द

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प्रदेश हाईकोर्ट ने पांच बीघा भूमि नियमितीकरण वाली सरकार
की नीति को खारिज कर दिया है। साथ ही अदालत ने 28 फरवरी 2026 तक सरकारी भूमि से अवैध कब्जों को हटाने के आदेश दिए।

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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकारी जमीन पर कब्जे नियमित करने वाले कानून को 23 साल बाद मनमाना और असांविधानिक घोषित करार करते हुए रद्द कर दिया है। अदालत ने हिमाचल भू-राजस्व अधिनियम की धारा 163-ए और उसके तहत बनाए नियम तत्काल प्रभाव से खारिज कर दिए हैं। यह धारा प्रदेश सरकार को सरकारी जमीन पर अतिक्रमण को नियमित करने के लिए नियम बनाने का अधिकार देती थी।

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अदालत ने महाधिवक्ता को फैसले की प्रति मुख्य सचिव और अन्य संबंधित अधिकारियों को तत्काल अनुपालन के लिए भेजने के निर्देश दिए हैं। साथ ही, उन राजस्व अधिकारियों पर कानून के अनुसार कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं, जिनकी देखरेख में अतिक्रमण हुआ है। सुप्रीम कोर्ट की टिकेंद्र सिंह पंवर वाली याचिका के तहत सेब से लदे पेड़ों को नहीं काटा जाएगा। अदालत ने सरकार को 28 फरवरी 2026 तक सभी सरकारी जमीनों से अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश दिए हैं।

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न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और विपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने यह फैसला पूनम गुप्ता और अन्य बनाम हिमाचल प्रदेश मामले में दिया है, जिसमें धारा 163-ए की सांविधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी। सरकार के आंकड़ों के अनुसार राज्य में लगभग 57,549 अतिक्रमण के मामले हैं, जो लगभग 1,23,835 बीघा सरकारी जमीन को कवर करते हैं। इसके अलावा नियमितीकरण के लिए प्राप्त आवेदनों की संख्या 15 अगस्त 2002 तक 1,67,339 थी।

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अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि किसी भूमि का सार्वजनिक उद्देश्य के लिए अधिग्रहण किया है और पूर्व मालिक ने उस पर फिर कब्जा कर लिया है, तो वह विपरीत कब्जे का दावा नहीं कर पाएंगे और उन्हें अतिक्रमण हटाने की लागत के साथ-साथ भूमि के उपयोग का शुल्क देना होगा। भारत सरकार की ओर से जवाब में कहा कि कानून में संशोधन की जरूरत नहीं है, क्योंकि अनधिकृत कब्जाधारियों की संख्या कम है। अधिकांश सरकारों ने भी उचित संशोधन की कोई इच्छा नहीं जताई है। उनके इस रवैये को देखते हुए कार्रवाई बंद कर दी गई। प्रदेश सरकार ने तर्क दिया था कि इस कानून का उद्देश्य वंचित, कमजोर और जरूरतमंद वर्गों को लाभ पहुंचाना था।

कोर्ट ने फैसले में वर्ष 1983, 1984 और 1987 में अतिक्रमण को नियमित करने के लिए सरकार की ओर से जारी नीतियों का भी उल्लेख किया। अदालत ने कहा कि 1994 की नीति को राज कुमार सिंगला बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य मामले में हाईकोर्ट ने असांविधानिक घोषित कर दिया था। इसके बाद एक उच्चाधिकार समिति का गठन हुआ, जिसने धारा 163-ए को शामिल करने का प्रस्ताव दिया। समिति ने कुछ विशेष प्रकार की भूमि जैसे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा की भूमि, गांव के रास्ते, जंगल और खेल के मैदान पर अतिक्रमण नियमित न करने की सिफारिश की थी। इसके तहत दो बीघा तक भूमि को नियमित करने की अनुमति थी।

राज्य सरकार ने कहा कि धारा 163-ए को लाने का उद्देश्य छोटे और सीमांत किसानों की जोत को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाना और राजस्व उत्पन्न करना था। अदालत ने कहा कि धारा 163-ए के उद्देश्यों और कारणों के बयान में विरोधाभास है। एक ओर सरकार अतिक्रमण पर अंकुश लगाने के लिए धारा 163 के प्रावधानों को और अधिक सख्त बनाने की बात करती है, वहीं दूसरी ओर धारा 163-ए के माध्यम से अतिक्रमण को कानूनी रूप देने का प्रयास करती है, जिसे पहले हाईकोर्ट ने अवैध घोषित किया था। अदालत ने सार्वजनिक ट्रस्ट सिद्धांत का उल्लेख करते हुए कहा कि सरकार प्राकृतिक संसाधनों की संरक्षक है। उसे उन्हें जनता के हित में उपयोग करना चाहिए, न कि निजी हितों के लिए। इस सिद्धांत के अनुसार, सार्वजनिक संपत्ति को बेचा या निजी उपयोग के लिए नहीं दिया जा सकता।

कोर्ट की टिप्पणी : सरकार अनैतिकता को वैध बना रही, कोर्ट मूकदर्शक नहीं बन सकता
अदालत ने कहा कि सरकार अपनी संपत्ति की रक्षा करने के बजाय अनैतिकता को वैध बना रही है। कोर्ट मूकदर्शक नहीं बन सकता। कोर्ट ने अपने फैसले में सरकार को कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए हैं। अदालत ने साथ ही नियमितीकरण के तहत याचिका के लंबित रहने के दौरान या किसी भी अन्य आधार पर अतिक्रमण हटाने पर लगी किसी भी तरह की रोक या सुरक्षा को समाप्त कर दिया है। अदालत ने कहा कि नगर निकायों और उनके अधिकारियों को अतिक्रमण की रिपोर्ट करने और उसे हटाने की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को धारा 163 से उस प्रावधान को हटाने पर विचार करने को कहा है, जिसके तहत एक अतिक्रमणकारी विपरीत कब्जे के आधार पर जमीन पर मालिकाना हक का दावा कर सकता है।
यह है धारा 163-ए
वर्ष 2002 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने हिमाचल प्रदेश भू राजस्व अधिनियम में एक नई धारा 163-ए जोड़ी। यह धारा सरकार को सरकारी भूमि पर अतिक्रमण को नियमित करने के लिए नियम बनाने की अनुमति देती है। इस नियम के तहत सरकार वंचित, कमजोर, जरूरतमंद और बेसहारा लोगों को सरकारी भूमि को नियमितिकरण करने का अधिकार देती है। प्रदेश में जिन लोगों ने सरकारी जमीन पर अधिक्रमण किया हुआ है, उनकी जमीन को नियमितिकरण का अधिकार देती है। सरकार वन भूमि आवंटित नहीं कर सकती, लेकिन यह धारा सरकारी जमीन को बेसहारा और गरीब लोगों को देनेे के लिए एक मात्र विकल्प थी।
amar ujala

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