संपादकीय: “स्पष्ट लिखावट, सुलभ उपचार की ओर एक बड़ा कदम”

सम्पादक भारत केसरी टीवी

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हरियाणा सरकार द्वारा डॉक्टरों को प्रिस्क्रिप्शन और मेडिकल नोट्स स्पष्ट, बोल्ड और पठनीय शब्दों में लिखने का जो निर्देश जारी किया गया है, वह स्वास्थ्य व्यवस्था को पारदर्शी और मरीज-केंद्रित बनाने की दिशा में एक सराहनीय पहल है। वर्षों से डॉक्टरों की अपठनीय लिखावट न केवल मरीजों के लिए बल्कि फार्मासिस्ट और चिकित्सा विशेषज्ञों के लिए भी बड़ी समस्या रही है। एक गलत पढ़ी गई दवा, इलाज को संजीवनी देने के बजाय जानलेवा भी साबित हो सकती है।

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पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट द्वारा इस विषय पर गंभीरता जताना और इसे अनुच्छेद 21 – जीवन के अधिकार – से जोड़ना, दर्शाता है कि यह केवल तकनीकी नहीं, बल्कि मानवीय अधिकारों से जुड़ा विषय है। एक मरीज को यह जानने का अधिकार है कि उसे कौन-सी दवा दी जा रही है और क्यों।

अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों या अशिक्षित तबकों में मरीज डॉक्टर की पर्ची को आंख मूंदकर मान लेते हैं, बिना यह जाने कि उनके साथ क्या उपचार हो रहा है। अस्पष्ट लिखावट इसमें और बाधा उत्पन्न करती है। ऐसे में यह आदेश चिकित्सकीय पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।

अब जरूरत इस बात की है कि इन निर्देशों को महज कागज तक सीमित न रखा जाए, बल्कि जमीनी स्तर पर सख्ती से लागू किया जाए। डॉक्टरों को हैंडराइटिंग सुधारने की दिशा में प्रशिक्षण दिया जाए, साथ ही ई-प्रिस्क्रिप्शन प्रणाली को भी बढ़ावा दिया जाए, जिससे मरीजों को इलाज की समुचित जानकारी डिजिटल रूप में भी सुलभ हो सके।

यह फैसला न केवल मरीजों के अधिकारों की रक्षा करेगा, बल्कि चिकित्सा जगत में एक नई जागरूकता और उत्तरदायित्व की भावना को भी जन्म देगा। यह बदलाव हमें एक ज्यादा जिम्मेदार और इंसानी संवेदनाओं से भरी स्वास्थ्य प्रणाली की ओर ले जाता है – जिसका हर नागरिक हकदार है।

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