संपादकीय: शिक्षक की डांट या पुलिस की ठुकाई — हमें क्या चुनना है?

संपादक भारत केसरी टीवी

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समाज में बढ़ते अनुशासनहीनता के माहौल के बीच एक सशक्त अपील सामने आई है — “शिक्षक की डांट सस्ती है, लेकिन पुलिस की ठुकाई महंगी पड़ती है।” यह कथन केवल एक विचार नहीं, बल्कि आज की शिक्षा व्यवस्था और सामाजिक संरचना पर एक कटु सत्य है, जिसे हम सभी को गंभीरता से लेना चाहिए।

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आज के बच्चों में न डर है, न अनुशासन और न ही जिम्मेदारी का अहसास। पांचवीं कक्षा से ही फैशन, अजीब हेयर स्टाइल, अभद्र भाषा और लापरवाह रवैया उनके व्यवहार का हिस्सा बनता जा रहा है। ऐसे में जब शिक्षक उन्हें सुधारने का प्रयास करते हैं, तो माता-पिता शिक्षकों पर ही सवाल उठाने लगते हैं। यही रवैया बच्चों में और अधिक उद्दंडता को जन्म देता है।

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समस्या यह नहीं कि शिक्षक डांटते हैं। समस्या यह है कि अब उनके पास वह अधिकार ही नहीं बचा जिससे वे एक बालक को सही दिशा दे सकें। शिक्षकों का डर समाज का डर था — जो बच्चों को अपराध की दुनिया से दूर रखता था। लेकिन आज वही बच्चे जब स्कूलों में नहीं संभलते, तो भविष्य में वे पुलिस के हाथों पिटते हैं और कोर्ट-कचहरी तक की नौबत आ जाती है।

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माता-पिता का अंधा प्यार और शिक्षकों के प्रति अविश्वास बच्चों को बिगाड़ रहा है। जो बच्चे आज घर में मां-बाप की नहीं सुनते, वही कल सड़क पर कानून की अवहेलना करते हैं। क्या हम सच में चाहते हैं कि शिक्षक बच्चों के चरित्र निर्माण की भूमिका से बाहर हो जाएं?

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हम भूल जाते हैं कि शिक्षक केवल ज्ञान नहीं, संस्कार भी देते हैं। 90% शिक्षक आज भी बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की चिंता में लगे हैं। वे हर डांट के पीछे एक बेहतर जीवन की कामना छिपाए होते हैं। लेकिन जब समाज उन्हें ही कटघरे में खड़ा करता है, तो शिक्षक पीछे हटने लगते हैं — और वहीं से बच्चों का पतन शुरू होता है।

हमें यह सोचना होगा कि यदि शिक्षक को डराया गया, उसकी प्रतिष्ठा छीनी गई, तो क्या वह एक अच्छा नागरिक गढ़ पाएगा? क्या केवल “दोस्ताना माहौल” में बच्चा जिम्मेदार नागरिक बन सकता है?

बच्चों को सिखाने के लिए जरूरी है अनुशासन। बिना भय के, बिना सजा के, केवल “सब ठीक है” कहकर बच्चों को बड़ा नहीं किया जा सकता।
“डर उस दीपक की तरह है, जो अंधेरे को दूर करता है।” डर खत्म हुआ तो दिशा भी खो जाएगी।

इसलिए यह वक्त है आत्ममंथन का। माता-पिता, शिक्षकों और समाज को मिलकर तय करना होगा कि हमें कैसी पीढ़ी चाहिए —
गुरु का सम्मान करने वाली, या कानून की सजा पाने वाली?

शिक्षक की डांट से चरित्र बनता है,
पुलिस की पिटाई से केस बनता है।

अब भी वक्त है — संभलने का, समझने का, और बदलाव लाने का।

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