लोक संगीत के स्वरूप में हो रहा बदलाव, सुनैनी शर्मा ने जताई चिंता


सोलन में ‘भारत केसरी टीवी’ से बातचीत के दौरान प्रसिद्ध लोक गायिका सुनैनी शर्मा ने लोक संगीत की बदलती दिशा को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, “जब कोई लोक गीतों के मूल बोलों को बदलकर प्रस्तुत करता है, तो यह मेरे दिल पर गहरी चोट की तरह महसूस होता है। लोक संस्कृति और संगीत हमारे अस्तित्व का हिस्सा हैं, और इनकी रक्षा करना हमारी जिम्मेदारी है।”
प्रदेश के प्रति अपनी गहरी आस्था प्रकट करते हुए उन्होंने कहा कि उनके परिवार की जड़ें यहां से जुड़ी हैं और प्रदेशवासियों से उन्हें विशेष स्नेह व सम्मान प्राप्त होता है। उन्होंने बताया कि पहले विवाह समारोहों में बन्ने और सुहाग गीतों की मधुर ध्वनि गूंजती थी, लेकिन आजकल डीजे की तेज़ धुनों ने इन्हें पीछे छोड़ दिया है। हालांकि, उन्होंने यह भी माना कि युवाओं द्वारा आयोजित सूफी नाइट्स और ग़ज़ल संध्याएं सकारात्मक बदलाव का संकेत देती हैं।
सुनैनी शर्मा ने अपनी नानी, सुप्रसिद्ध लोक गायिका सुरेंद्र कौर और प्रसिद्ध लोक गायक आशा सिंह मस्ताना की जोड़ी को याद करते हुए बताया कि उनके समय में कार्यक्रमों में भारी संख्या में लोग जुटते थे। एक रोचक किस्से का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि उनकी नानी को एक बड़े म्यूजिक ब्रांड ने व्यावसायिक गीत गाने के लिए मोटी रकम की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने यह कहकर इनकार कर दिया था, “मैं वही गाऊंगी, जो मेरी आत्मा को संतुष्ट करे।”
उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि हीर-रांझा की कहानी तो सभी जानते हैं, लेकिन सस्सी-पुन्नू, उमर-मारवी जैसी सैकड़ों लोक गाथाएं विलुप्त होने की कगार पर हैं। इन लोक कथाओं को संरक्षित करने के लिए उन्होंने 121 विद्वानों के साथ मिलकर एक शोध परियोजना शुरू की है।
युवाओं को संदेश देते हुए सुनैनी शर्मा ने कहा, “हमें अपनी सांस्कृतिक धरोहर को पहचानने और उसे संजोने की जरूरत है। लोक संगीत और परंपराएं हमारी जड़ों से जुड़ी हैं, और यदि हम इन्हें सुरक्षित नहीं रखते, तो आने वाली पीढ़ियां अपनी विरासत से वंचित रह जाएंगी।”