नगर निगम सोलन में मेयर चुनाव में डालने से पहले अपना वोट एजेंट को दिखएंगे पार्षद

सोलन। प्रदेश सरकार के लिए नाक का सवाल बना सोलन नगर निगम में कांग्रेस का मेयर बनाने के लिए शहरी विकास विभाग ने नगर निगम चुनाव नियमावली 2012 में बड़ा संशोधन कर दिया है। इसके तहत अब मेयर व डिप्टी मेयर के चुनावों में पार्षद को मेयर के प्रत्याशी के एजेंट को अपना वोट दिखा कर डालना होगा। यदि पार्षद ने ऐसा नहीं किया तो इसका अर्थ होगा कि उसने पार्टी के दिशा निर्देशों के विपरीत जाते हुए मतदान किया है। नियमावली में संशोधन की भनक लगते ही सोलन नगर निगम के मेयर पद पर भी नजरें गढ़ाए बैठे भाजपा के नेताओं ने इस मामले में कानून के जानकारों से विचारविमर्श शुरू कर दिया है।

नया संशोधन शहरी विकास विभाग के प्रधान सचिव देवेश कुमार के हस्ताक्षरों से आज ही जारी किया गया है। संशोधन के अनुसार चुनाव से पहले चुनाव में हिस्सा लेने वाली सभी राजनैतिक पार्टियों को अपना अधिकृत एजेंट चुनाव कक्ष में बिठाना होगा। इसके लिए एजेंट को फार्म 51 भरकर चुनाव अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करना होगा। इसके बाद चुनाव में मतदान करने वाले पार्षद को वोट डालने से पहले क्रास मार्क किया गया अपना बैलेट पेपर अपनी पार्टी के एजेंट को दिखाना होगा। य​दि वह ऐसा नहीं करता है तो मान लिया जाएगा कि उसने पार्टी के दिशा निर्देशों के खिलाफ मतदान किया है।

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विदित रहे कि 22 अगस्त को सोलन नगर निगम में मेयर का चुनाव होना है। सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्षी दल भाजपा मेयर की कुर्सी पर कबजा जाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। नगर निगम सोलन के मेयर चुनाव को दोनों ही पार्टियां कितनी संजीदगी से ले रही है। इसका एक नमूना कल शाम को ही दिखा जब यहां भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजीव बिंदल की भाभी व एक अन्य नेता के परिजन की मृत्यु पर शोक संवेदना व्यक्त करने आए पूर्व सीएज जयराम ठाकुर ने जाते जाते सर्किट हाउस में भाजपा समर्थित पार्षदों की एक बैठक ले कर 22 अगस्त की रणनीति पर विचार किया था।

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दरअसल सोलन नगर निगम में फिलवक्त तीन वार्डों में पार्षदों के पद रिक्त है। इस प्रकार विधायक समेत कुल 5 पार्षद ही मेयर चुनाव में हिस्सा ले सकते हैं। इन में से कांग्रेस के खेमे में विधायक समेत आठ वोट हैं। जबकि भाजपा के खेमे में निर्दलीय समेत सात वोट हैं। भाजपा पूर्व मेयर चुनाव की तरह रणनीति अपना कर इस बार मेयर पद हथियाने की रणनीति अपना रही थी। लेकिन सुक्खू सरकार के ताजा दांव ने उसकी पूरी णनीति पर पानी फेर दिया है। अब भाजपा के नेता कानूनविदों से नियमावली में किए गए ताजा संशोधन की काट निकालने की माथापच्ची में व्यस्त हो गए हैं।

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उधर कांग्रेस में भी पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ चुपचाप वोट डालने की मंशा पाले पार्षदों के लिए भी अब नई समस्या आ खड़ी हुई है। इसके लिए उन्हें या तो पार्टी से सीधी खिलाफत करनी होगी या फिर चुपचाप चुनाव के समय कांग्रेस के एजेंट को दिखा कर अपना मतदान करना होगा।

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