Himachal: हंसते-खेलते परिवार पर टूटा दुखों का पहाड़, सुनील की दर्दभरी दास्तां सुनकर भर आएंगी आंखें

कभी हंसता-खेलता परिवार ऐसी मुसीबत में उलझा कि इस परिवार के हरेक सदस्य पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा। परिवार के मुखिया की नौकरी छूट गई, पत्नी कोमा में चली गई, मां को कोमा में देखकर नन्ही बेटी मानसिक तौर पर बीमार हो गई और एक नन्हे बच्चे ने कोमा में पड़ी अपनी मां की कोख से जन्म लिया, लेकिन न मां का दुलार हासिल कर पाया और न ही मां का दूध इस बच्चे को नसीब हो पाया।

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खाते में हैं महज 256 रुपए, 2 वर्षों से मुसीबतों में परिवार
परिवार का मुखिया अपने परिवार को सम्भालते-सम्भालते खुद बिखरने लग गया और लाखों रुपए का कर्जदार हो गया। इस परिवार के पास आजीविका का कोई साधन नहीं है लेकिन खर्चें हैं जो कम नहीं हो रहे हैं। परिवार के मुखिया के सिर पर पत्नी और बेटी के उपचार का खर्च है और नन्हे बेटे सहित नानी और बुजुर्ग मां की जिम्मेदारी भी है। खाते में महज 256 रुपए हैं। यह हालत चिंतपूर्णी विधानसभा क्षेत्र के गांव चक्कसराय में रहने वाले सुनील कुमार के परिवार की है, जो बीपीएल सूची में शामिल है और लगभग 2 वर्षों से मुसीबतों में घिरा हुआ है।

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फेफड़ों के फेल होने के कारण कोमा में चली गई रेणू 
सुनील कुमार की वर्ष 2013 में सूरी गांव की रेणू बाला से शादी हुई थी। रेणू ने सबसे पहले एक बेटी को जन्म दिया और परिवार हंसी-खुशी रहने लगा। इसी बीच वर्ष 2022 में रेणू को अचानक सांस लेने में दिक्कत आई और उसे क्षेत्रीय अस्पताल ऊना पहुंचाया गया, जहां से उसे पीजीआई पहुंचाकर दाखिल करवाया गया। फेफड़ों के फेल होने के कारण रेणू कोमा में चली गई। इस दौरान वह 4 माह की गर्भवती थी। कोमा में उपचार के दौरान बच्चा गर्भ में पलता रहा और 9 माह बाद पीजीआई में ऑप्रेशन के बाद रेणू ने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया।

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पत्नी के साथ बेटी का भी पीजीआई में उपचार करवा रहा सुनील
रेणू के बीमार होने के बाद घर की बड़ी बेटी को मजबूरी में उसकी नानी के पास भेज दिया गया, जहां वह पढ़ाई कर रही है। इस बच्ची का अपनी मां रेणू से बहुत प्यार है। हंसी-खुशी के पलों में दोनों मां-बेटी खूब लाड़ प्यार और बातें करती थीं, लेकिन रेणू के बीमार होकर कोमा में चले जाने पर सब बदल गया। मां की यह हालत देखकर नन्ही बच्ची के कोमल मन पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि वह स्वयं डिप्रैशन में पहुंच चुकी है। सुनील अब अपनी पत्नी रेणू के साथ-साथ अपनी बच्ची का भी पीजीआई में उपचार करवा रहा है।

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15 दिन में जाना पड़ता है पीजीआई
रेणू के इलाज के लिए हर 15 दिन में एक बार पीजीआई जाना पड़ता है और दवाइयां लेनी पड़ती हैं। इसके लिए एम्बुलैंस या गाड़ी की व्यवस्था करना और दवाइयों पर ही हर 15 दिन में लगभग 12000 रुपए का खर्च आ जाता है। रुपए के अत्यंत अभाव में इलाज भी सही तरह से नहीं हो पा रहा है।

सुनील की मां को भी है दिल की बीमारी
कभी चंडीगढ़ में निजी लैब में डिस्पैच का कार्य करने वाला सुनील आज बेकार होकर परिवार सम्भालने को मजबूर है। सुनील की मां को भी दिल की बीमारी है और श्वास रोग से वह पीड़ित है। सुनील की लाडली बेटी उससे दूर अपनी नानी के पास रह रही है।

मुख्यमंत्री कार्यालय में भेजी है फाइल
इस संबंध में चिंतपूर्णी विस क्षेत्र के विधायक सुदर्शन बबलू का कहना है कि इस परिवार की मदद के लिए फाइल मुख्यमंत्री कार्यालय में भेजी गई है। जल्द ही इस परिवार को आर्थिक मदद मुहैया करवाई जाएगी।

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