सत्य से जुड़ाव ही आत्मबोध की प्राप्ति का सरल मार्ग – निरंकारी राजपिता रमित जी


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सत्कार योग्य निरंकारी राजपिता रमित जी ने रजवंत कौर भुल्लर के प्रेरणा दिवस पर अपने दिव्य वचनों के माध्यम से जीवन के गूढ़ सत्य को उजागर किया। उन्होंने कहा कि जब सत्य प्रकट होता है, तो मिथ्या के आवरण स्वतः हट जाते हैं और हमें अपने अस्तित्व का वास्तविक अर्थ समझ आने लगता है।
महात्मा बुद्ध का उदाहरण देते हुए उन्होंने समझाया कि शरीर और सांसारिक रिश्ते क्षणभंगुर हैं, जबकि स्थायित्व केवल परमात्मा का है। जीवन में किसी भी वस्तु से आसक्ति नहीं रखनी चाहिए, क्योंकि कुछ भी स्थायी नहीं है, जैसे हम किसी सराय में असुविधाओं से विचलित नहीं होते, वैसे ही ब्रह्मज्ञानी संत संसार को क्षणिक मानकर सहजता और सौंदर्य से जीवन जीते हैं।
निरंकारी राजपिता जी ने रजवंत कौर जी के जीवन को प्रेरणास्वरूप बताते हुए कहा कि उन्होंने सदैव मानवता को जोड़ने में अपनी सकारात्मक भूमिका निभाई। उनका जीवन एक सुगंधित पुष्प के समान था, जो अपनी महक से वातावरण को आनंदमय बना देता है। जिस प्रकार पुष्प के पास से जब कोई गुजरता है, तो उसे उसकी सुगंध और कोमलता का अनुभव होता है, वैसे ही उनका व्यक्तित्व भी प्रेम, करुणा और आध्यात्मिकता से परिपूर्ण था। उनका जीवन एक ग्रंथ के समान था, जिससे हर कोई सीख ले सकता है। उन्होंने चलते-फिरते अपने मन को मंदिर बना लिया। वह जहाँ भी गईं, लोगों को ब्रह्मज्ञान की ओर प्रेरित किया। उन्होंने न केवल स्वयं अध्यात्म को अपनाया, बल्कि अन्य जिज्ञासु आत्माओं को भी परम सत्य से जोड़ने का प्रयास किया। उनकी निष्ठा, समर्पण और निडरता ने उन्हें सतगुरु द्वारा सौंपी गई सेवा को पूर्णतया निभाने का सामथ्र्य प्रदान किया। उन्होंने गुरमत के सिद्धांतों के अनुरूप एक आदर्श जीवन जिया और अपने आचरण से यह संदेश दिया कि सत्य, प्रेम और सेवा का मार्ग ही मानव जीवन का सच्चा उद्देश्य है।
अंत में राजपिता जी ने भक्ति और परमात्मा के लिए समय न होने की धारणा को निराधार बताते हुए कहा कि लोग जीवनभर वस्तुओं अर्थात् माया के पीछे भागते हैं, यह सोचकर कि उनसे शांति और सुकून मिलेगा, लेकिन ऐसा कभी नहीं होता। जब ब्रह्मज्ञान प्राप्त होता है, तब परमात्मा का अनुभव हर श्वास और रोम-रोम में बस जाता है। फिर यह प्रश्न ही नहीं उठता कि भक्ति के लिए समय कहाँ है, क्योंकि जिस प्रकार सांस लेने के लिए समय की प्रतीक्षा नहीं होती, उसी प्रकार परमात्मा से जुड़ने के लिए भी कोई बंधन नहीं होता।
निसंदेह इस दिव्य संदेश ने उपस्थित श्रद्धालुओं को गहराई से प्रेरित किया और उन्हें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने का संकल्प दिलाया।