अरविंद केजरीवाल: एक आंदोलन से सत्ता तक और भविष्य की चुनौतियाँ

मदन शर्मा

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अरविंद केजरीवाल भारतीय राजनीति में एक असाधारण व्यक्तित्व हैं। एक आईआईटीयन, एक ईमानदार अफसर, एक जन आंदोलनकारी और फिर एक सफल राजनेता—उन्होंने हर भूमिका में एक अलग पहचान बनाई। उनके नेतृत्व में आम आदमी पार्टी (AAP) ने भारतीय राजनीति में पारंपरिक पार्टियों के खिलाफ एक नई लहर खड़ी की। लेकिन उनकी यात्रा उतनी आसान नहीं रही, जितनी सतह पर दिखती है।

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राजनीति में प्रवेश: एक क्रांति की शुरुआत

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साल 2011 में जब अन्ना हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन अपने चरम पर था, तब केजरीवाल उसमें एक मजबूत कंधे की तरह उभरे। उन्होंने लोकपाल बिल की मांग के लिए सरकार को झकझोर दिया। लेकिन जब महसूस हुआ कि सिर्फ आंदोलन से बदलाव नहीं आएगा, तब उन्होंने राजनीति में प्रवेश करने का फैसला किया। 2012 में आम आदमी पार्टी का गठन हुआ, और 2013 में उन्होंने दिल्ली में अपनी पहली सरकार बनाई। हालाँकि, यह सरकार सिर्फ 49 दिनों में गिर गई, लेकिन उनके विचारों ने जनता का दिल जीत लिया।

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दिल्ली मॉडल: सफलता की कहानी

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2015 और 2020 में केजरीवाल की पार्टी ने दिल्ली में प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई। बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में किए गए कार्यों ने “दिल्ली मॉडल” को राष्ट्रीय पहचान दिलाई। सरकारी स्कूलों की हालत सुधरी, मोहल्ला क्लीनिक आए, और जनता को मुफ्त सुविधाएँ मिलने लगीं। केजरीवाल का यह मॉडल एक नए तरह की राजनीति का उदाहरण बना, जहाँ विकास और कल्याणकारी योजनाएँ केंद्र में थीं।

चुनौतियाँ और संघर्ष

राजनीति में कोई भी यात्रा आसान नहीं होती। केजरीवाल को भी कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। केंद्र सरकार से उनका टकराव, एलजी के साथ मतभेद, विपक्षी दलों के आरोप, और फिर हाल ही में भ्रष्टाचार के आरोपों में उनकी गिरफ्तारी जैसी घटनाएँ उनकी राजनीति के सबसे कठिन दौर रहे हैं। इसके बावजूद, उनके समर्थकों का भरोसा आज भी बना हुआ है।

भविष्य की राह: क्या होगा आगे?

आज, जब केजरीवाल कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं, तब उनके सामने कई सवाल खड़े हैं—क्या AAP राष्ट्रीय स्तर पर खुद को स्थापित कर पाएगी? क्या दिल्ली मॉडल को देश के अन्य राज्यों में अपनाया जा सकेगा? और सबसे अहम, क्या वह अपने ऊपर लगे आरोपों से बेदाग निकलकर फिर से जनता के नेता बन पाएंगे?

केजरीवाल की राजनीति हमेशा जनता से जुड़ी रही है। उनके समर्थक उन्हें एक ईमानदार नेता मानते हैं, लेकिन राजनीति में धारणा जितनी महत्वपूर्ण होती है, उतनी ही महत्वपूर्ण रणनीति भी होती है। अगर वह इन मुश्किलों से पार पा लेते हैं, तो निश्चित ही भारतीय राजनीति में उनकी जगह और मजबूत होगी। लेकिन अगर वह खुद को बचाने में असफल रहते हैं, तो AAP के लिए आगे की राह और कठिन हो सकती है।

निष्कर्ष:
अरविंद केजरीवाल की कहानी केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि एक विचारधारा की भी है—एक ऐसी राजनीति की, जो पारंपरिक राजनीति से अलग होने का दावा करती है। उनका भविष्य चाहे जिस भी दिशा में जाए, लेकिन उन्होंने भारतीय राजनीति को एक नई दिशा देने में अहम भूमिका निभाई है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वह इस मुश्किल दौर से निकलकर फिर से मजबूती से खड़े हो पाएंगे या नहीं।

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