अपने नित्य कार्यों के साथ भगवान के नाम.सुमिरन करते रहें – कथाव्यास का

सोलन। सनौरा गिरी पुल में आयोजित लिंग पुराण कथा में कथा व्यास ज्योतिषाचार्य ओमप्रकाश शर्मा जी ने भक्तों को बिल्व पत्र की महिमा के बारे में बताया।‌ उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति बिल्व पत्र के पेड़ के नीचे स्नान करता है उसके जन्म जन्म के पाप समाप्त हो जाते हैं। ‌ इसके बाद उन्होंने कथा में माता सती के विवाह की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि पुत्र यदि आज्ञाकारी हो तो एक भी अच्छा है। व्यक्ति पर तीन ऋण होते हैं देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण, जीवन में हर व्यक्ति को इन तीन ऋणों से मुक्त होना आवश्यक है।‌ पुत्र को माता पिता की मृत्यु के बाद उनकी पुण्यतिथि पर ब्राह्मण भोज अवश्य करना चाहिए। गया जी में जाकर माता-पिता का पिंडदान और श्राद्ध करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आत्मा परमात्मा का ही रूप है और सच्चे सेवा भाव से की गई भक्ति भगवान को अति प्रिय होती है ।

भगवान शंकर बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं कुछ बेलपत्र ही व्यक्ति श्रद्धा भाव से उन्हें चढ़ा दे वह उसी से प्रसन्न होकर अपने भक्तों पर कृपा करते हैं । उन्होंने कहा कि अपने व्यस्त समय में से कुछ क्षण भगवान की भक्ति के लिए अवश्य निकालना चाहिए अपने हर कर्म को भगवान के नाम का सुमिरन करते हुए करना चाहिए। आज हर कार्य के लिए व्यक्ति के पास समय है लेकिन भगवान की भक्ति के लिए समय नहीं है। यदि मनुष्य को अपने जीवन का कल्याण करना है तो अपने नित्य नियम के कार्य करते हुए भगवान के नाम का जाप करते रहना चाहिए।
एक घडी, आधी घडी, आधी में पुनि आध। तुलसी चरचा राम की, हरै कोटि अपराध।। इसका क्या अर्थ है? तुलसीदास जी कहते हैं कि एक घड़ी, आधी घड़ी या चौथाई घड़ी—जितना भी समय मिले, सत्संग या राम चर्चा अवश्य करनी चाहिए, इससे मनुष्य के जाने-अनजाने करोड़ों-करोड़ों पाप नष्ट हो जाते हैं। ज्योतिषाचार्य ओम प्रकाश शर्मा ने बताया कि भगवान शंकर के शिव पुराण में जो कथाएं आती हैं वही लिंग पुराण में भी आती हैं । भगवान के 12 ज्योतिर्लिंगों का इसमें वर्णन है । व्यक्ति कुछ समय के लिए भी यदि इस लिंग पुराण का श्रवण करता है तो वह कई कोटी अपराधों से मुक्त हो जाता है। कथा में उन्होंने भक्तों को नवधा भक्ति के बारे में भी बताया उन्होंने कहा कि सबसे पहले भक्ति श्रवण करना है आज का व्यक्ति सुनना नहीं चाहता बस सुनाना चाहता है। इसलिए सुनने की आदत डालें इन कानों से भगवान के गुणगान को सुने उसके बाद भगवान का कीर्तन करें। उनके नाम का जाप करें साधुओं का संघ करें। ‌ उन्होंने कहा कि भगवान के कीर्तन में नृत्य करना और उनकी भक्ति में डूब जाना यही मनुष्य का सच्चा कर्म है। ‌ इस कलीकाल में भगवान का नाम जप ही व्यक्ति को जन्म-जन्मांतर के चक्र से मुक्त करने वाला है। ‌ कथा क्रम में उन्होंने अनेक भजनों की प्रस्तुति दी और अंत में भगवान भोलेनाथ की आरती के साथ सभी भक्तों को आशीर्वाद देकर प्रसाद दिया।‌

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